गुरुवार, 14 फ़रवरी 2008

प्रेम दिवस पर एक कविता

कवि तो हूं नही की कविता लिखूं
पर सोचता हूं दिल तो है उससे हीकविता लिखने की कोशिश करता हूं
दिल भी थोडी आनाकानी करता है दिल है ना
तीन पंक्तिया लिख चुका हूं कविता सी लगती नही
क्या कविता का कोई फार्मूला होता है शायद नही
मेरी मर्जी कविता मेरी है कैसे भी लिखूं भटक गया हूं वापस आता हूं
याद आया प्रेम पर लिखना है प्रेम बहुत भटकाता है
यही भट्काना बहुत सीखाता है
प्रेम से सीखो जो कुछ भी सिखाये
बस प्रेम से सीखो

2 टिप्‍पणियां:

manish ने कहा…

gautam bhai bahut sahi jaa rahe ho

KK Yadav ने कहा…

यही भट्काना बहुत सीखाता है
प्रेम से सीखो जो कुछ भी सिखाये
बस प्रेम से सीखो...bahut khoob..keep it up !!