कवि तो हूं नही की कविता लिखूं
पर सोचता हूं दिल तो है उससे हीकविता लिखने की कोशिश करता हूं
दिल भी थोडी आनाकानी करता है दिल है ना
तीन पंक्तिया लिख चुका हूं कविता सी लगती नही
क्या कविता का कोई फार्मूला होता है शायद नही
मेरी मर्जी कविता मेरी है कैसे भी लिखूं भटक गया हूं वापस आता हूं
याद आया प्रेम पर लिखना है प्रेम बहुत भटकाता है
यही भट्काना बहुत सीखाता है
प्रेम से सीखो जो कुछ भी सिखाये
बस प्रेम से सीखो
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2 टिप्पणियां:
gautam bhai bahut sahi jaa rahe ho
यही भट्काना बहुत सीखाता है
प्रेम से सीखो जो कुछ भी सिखाये
बस प्रेम से सीखो...bahut khoob..keep it up !!
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